Monday, March 3, 2008

ये सहर पद्थर का सहर है
यहा गूंगे बहरे बसते है
मंहगे हे यहाँ सोना चाँदी
जान और अस्मत सस्ते है



लोहें के बने है लोग यहा
जो लोहे के दिल रखते है
जो झूट बोलकर खुश होते
सच के मरने पर हँसते है


अंधे लंगडे क़ानून यहा
गूंगे है यहाँ जो सच्चे है
जाने कैसे बहरे है सब
सिक्को की खनक ही सुनते है


प्यार,वफ़ा ,इमान ,खवाब
यहाँ बाजारों मी बिकते है
ताकत की यहाँ होती पूजा
और कमजोरों पे हँसते है


पत्थर के सहर के लोग सभी
सीसे के गहरो मी रहते है
लोहे के बने है दिल इनके
सिक्को के जुबा हे समजते है


पत्थर के सहर के लोग सभी
सीसे के गहरो मी रहते है
लोहे के बने है दिल इनके
सिक्को के जुबा हे समजते है

1 comment:

नियंत्रक । Admin said...

कमला भण्डारी जी,

आपने हिन्द-युग्म के प्रयासों को सराहा, हम इसके लिए आभारी हैं।

हम चाहते हैं कि आप भी हमारे आयोजनों में शिरकत करके इसे सफल बनायें। इस माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भाग लें।